इस रविवार इंडिया गेट पहुंचा, जहां इको फ्रेंडली वाहनों की एक रैली का आयोजन किया गया था। बैटरी चलित वाहन बनाने वाली कंपनियां कुछ प्रचार बटोरने की जुगत भिड़ा रही थी ताकि लोग चार लाख फूंक कर दो टके की गाडियां ख़रीद लें। इस रैली को हरी झंडी दिखाने पहुंची इन कंपनियों की अघोषित ब्रांड एम्बेसडर शीला दीक्षित। क्योंकि अगर मुख्यमंत्री की हैसियत से पर्यावरण के लिए कुछ करने का इरादा होता तो इन गाडियों को बनाने वाली कंपनियों के साथ बैठकर लोगों को सस्ती गाडियां मुहैया कराने का इंतजाम किया होता, न कि चार लाख में दो लोगों की सवारी वाली कार खरीदने की सलाह लोगों को दे रही होती। खैर सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं। इसी रैली में फ़रीदाबाद के एक सज्जन भी अपनी 'नॉटी' के साथ पहुंचे थे। 'नॉटी' यानि वही मोबाइक जिस पर मैं सवार नज़र आ रहा हूं। जहां एक तरफ़ बड़ी कंपनियां इन 'इको फ्रेंडली बट नॉट इकोनॉमी फ्रेंडली' कारों में बिजनेस और मार्केट तलाश रही हैं, वहीं फ़रीदाबाद का सजीव पिछले पांच साल से अपनी सारी कमाई इस छोटी सी मोबाइक को बनाने के जुनून में खर्च कर रहा है। सालों की मेहनत लोगों तक पहुंच जाए इसलिए इस मोबाइक को 12 हज़ार में बेचने को तैयार है यानि बिना किसी मुनाफ़े के। मुख्यमंत्री मीडिया के पूछने पर इस मोबाइक और इसे बनाने वाले की तारीफ़ कर रही थी। मुझे नहीं लगता कि इस तारीफ़ को सुन कर सजीव के मन में अपनी चार मोबाइक के उन पार्टस का ख्याल न आया हो जिन्हें कस्टम से छुडाने के लिए उसे पैसों की ज़रुरत है। इस रैली में पांच मोबाइक ला सके इसके लिए जनाब ने अपनी हैसियत से बढ़कर किसी तरह चीन से चार मोटर तो मंगवा ली, लेकिन जोश में ये भूल गया कि कस्टम विभाग में सौदा पटाने के लिए पैसा कहां से आएगा? खैर हमें क्या? हमें तो अपने काम से मतलब है। जज़्बा क़द्र करने लायक था सो क़द्र की, लगा कि टीवी स्क्रीन पर ब्रांड एम्बेसडर उर्फ़ शीला आंटी से ज़्यादा इस नौजवान को दिखना चाहिये, तो दस सेकेंड 'आंटी' और दो मिनट 'नॉटी' को दिखाया। और हां, इस सब के बीच 'नॉटी' की सवारी को भला कैसे भूल सकता हूं? वाकई, बड़ी मज़ेदार रही 'नॉटी' का सवारी।
Sunday, November 22, 2009
मज़ेदार रही 'नॉटी' की सवारी
इस रविवार इंडिया गेट पहुंचा, जहां इको फ्रेंडली वाहनों की एक रैली का आयोजन किया गया था। बैटरी चलित वाहन बनाने वाली कंपनियां कुछ प्रचार बटोरने की जुगत भिड़ा रही थी ताकि लोग चार लाख फूंक कर दो टके की गाडियां ख़रीद लें। इस रैली को हरी झंडी दिखाने पहुंची इन कंपनियों की अघोषित ब्रांड एम्बेसडर शीला दीक्षित। क्योंकि अगर मुख्यमंत्री की हैसियत से पर्यावरण के लिए कुछ करने का इरादा होता तो इन गाडियों को बनाने वाली कंपनियों के साथ बैठकर लोगों को सस्ती गाडियां मुहैया कराने का इंतजाम किया होता, न कि चार लाख में दो लोगों की सवारी वाली कार खरीदने की सलाह लोगों को दे रही होती। खैर सिक्के के हमेशा दो पहलू होते हैं। इसी रैली में फ़रीदाबाद के एक सज्जन भी अपनी 'नॉटी' के साथ पहुंचे थे। 'नॉटी' यानि वही मोबाइक जिस पर मैं सवार नज़र आ रहा हूं। जहां एक तरफ़ बड़ी कंपनियां इन 'इको फ्रेंडली बट नॉट इकोनॉमी फ्रेंडली' कारों में बिजनेस और मार्केट तलाश रही हैं, वहीं फ़रीदाबाद का सजीव पिछले पांच साल से अपनी सारी कमाई इस छोटी सी मोबाइक को बनाने के जुनून में खर्च कर रहा है। सालों की मेहनत लोगों तक पहुंच जाए इसलिए इस मोबाइक को 12 हज़ार में बेचने को तैयार है यानि बिना किसी मुनाफ़े के। मुख्यमंत्री मीडिया के पूछने पर इस मोबाइक और इसे बनाने वाले की तारीफ़ कर रही थी। मुझे नहीं लगता कि इस तारीफ़ को सुन कर सजीव के मन में अपनी चार मोबाइक के उन पार्टस का ख्याल न आया हो जिन्हें कस्टम से छुडाने के लिए उसे पैसों की ज़रुरत है। इस रैली में पांच मोबाइक ला सके इसके लिए जनाब ने अपनी हैसियत से बढ़कर किसी तरह चीन से चार मोटर तो मंगवा ली, लेकिन जोश में ये भूल गया कि कस्टम विभाग में सौदा पटाने के लिए पैसा कहां से आएगा? खैर हमें क्या? हमें तो अपने काम से मतलब है। जज़्बा क़द्र करने लायक था सो क़द्र की, लगा कि टीवी स्क्रीन पर ब्रांड एम्बेसडर उर्फ़ शीला आंटी से ज़्यादा इस नौजवान को दिखना चाहिये, तो दस सेकेंड 'आंटी' और दो मिनट 'नॉटी' को दिखाया। और हां, इस सब के बीच 'नॉटी' की सवारी को भला कैसे भूल सकता हूं? वाकई, बड़ी मज़ेदार रही 'नॉटी' का सवारी।
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1 comment:
acha laga naati ki sawaari padh kar.
shayad kuch log samjh paayein ki raajneeti se badh kar desh bhi ek hakeeqat hai.. praise the deserving people...
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