Tuesday, November 3, 2009

जाने क्यूं मन बेचैन है...?

एक लम्बे वक्त के बाद आज कंप्यूटर के कीबोर्ड पर अंगुलियां फिर से थिरकने को मचल रही हैं क्योंकि हलचल कहीं दिल में उठी है। ऐसा पहली बार नहीं है कि किसी बात को लेकर मन उद्वेलित हो रहा हो। लेकिन अमूमन भावनाएं जितनी तेजी से उठती हैं उससे भी कहीं तेज़ी से ज़िंदगी की आपाधापी में दफ़न हो जाती हैं। खैर बहुत कम होता है कि ऑफ़िस की मारामारी से फुरसत मिले तो आप घर से निकलें, वो भी बिना कुछ मन में सोचे कि आखिर करना क्या है, जाना कहां है। बस यूं ही निकल पड़ा था अचानक ये जानने, कि आखिर शहर में हो क्या रहा है। ख़बरों की दुनिया से होकर भी ऐसी बात कर रहा हूं, आपको थोड़ा अजीब तो ज़रुर लगेगा। मगर हकीकत यही है कि ख़बर बनाते हुए अकसर सतह को ही छू पाते हैं हम। बहुत ही मशीनी हो गई है ख़बरों की दुनिया भी अब.....कुछ लोग बताते हैं कि पहले ऐसा नहीं था। मगर उन लोगों की बात में कितना सच है ये कहना वाकई मुश्किल है। क्योंकि मैनें तो जब से देखा, ख़बरों की इस दुनिया का यही बिजनेस देखा है। बिजनेस से याद आया कि अगर हम जैसे हाई क्लास मज़दूरों की बिजनेस ने ये हालत कर दी है तो फिर एक आम मज़दूर की क्या हालत होगी? सवाल का जवाब तलाशना था इसलिये डीटीसी की नई बस में चढ़ते ही शक्ल से मज़दूर दिखने वाले इंसान को ढूंढने लगा। खैर कई चेहरे नज़र आए तो अपनी सहूलियत देख कर थोड़े से साफ़ सुथरे से दिखने वाले एक शख्स के पास बैठ गया। पत्रकार की पारखी नज़र इतनी तो काम आयी कि जिस शख़्स के पास बैठा था वो वाकई एक फैक्ट्री में काम करने वाला मज़दूर ही था। मुझे बस बात शुरु करनी थी बाकी सब उसने कर दिया। शीला दीक्षित से लेकर सोनिया गांधी तक सबको वो सलाम दिया कि अगर सुन लें, तो राजनीति से तौबा कर लें। नाराज़गी ज़्यादा नहीं थी, बस इतनी भर कि महीने में मिलने वाले 5 हज़ार रुपये से खाना खायें या फिर तन ढ़कने का इंतज़ाम करें। रोज़ फैक्ट्री जाने के लिए डीटीसी का सफ़र करते हैं मगर किराया बढ़ने से कोई ख़ास शिकायत नहीं है। बच्चों को दूध पिलाएं या नहीं, ये तो खैर उनके दिमाग में सवाल भी नहीं आता। मैंने जान बूझ कर दाल, चीनी की बात छेड़ी, तो वो इंसान बस मुस्कुरा दिया। शायद समझा कि मैं उसका मज़ाक उड़ा रहा हूं। कैसे समझाता मैं उसे कि मुझे तो बस ये जानने में दिलचस्पी है कि जिस तरह कॉमनवेल्थ से पहले दिल्ली में चमत्कारी ढंग से सब कुछ सुधरने जा रहा है....क्या उसे भी अपने लिए कुछ उम्मीद है? चर्चा में और भी बहुत कुछ था लेकिन अगर जानने की इच्छा बची हो तो किसी शख्स को खुद ही टटोल लीजिए, यकीन मानिये जवाबों में ज़्यादा फर्क़ नहीं होगा।

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