सारा मीडिया परेशान है कि कानून मंत्री तोमर आखिर हटते क्यों नहीं या
हटाये क्यों नहीं जा रहे। ज्यादातर पत्रकार इस बारे में आश्वस्त हैं कि जो डिग्री
जितेन्द्र तोमर के पास हैं वो फर्ज़ी हैं। सार्वजनिक तौर पर मौजूद दस्तावेज़ भी
यही इशारा करते हैं। लेकिन फिर भी तोमर के चेहरे पर शिकन तक नहीं है। मंत्री जी को
कभी फोन कर लीजिए या मिल लीजिए, ऐसे हंसते मुस्कुराते नज़र आएंगे कि जैसे कुछ हुआ
ही नहीं। कई साल हो गए पत्रकारिता करते हुए इसलिए आसानी से समझ सकता हूं उन सब दोस्तों
का दर्द जिन्होंने तोमर की फर्ज़ी डिग्री से जुड़ी स्टोरीज़ की हैं। वाकई परेशानी
होती है जब आपको लगे की तमाम कागज़ात आपकी स्टोरी को सही ठहरा रहे हैं फिर भी वो
व्यक्ति जिसके खिलाफ़ आपने स्टोरी की है, अपनी कुर्सी पर विराजमान है, बेफिक्र
है.....ऐसे में पत्रकार और ज़ोर लगाते हैं ताकि कुर्सी को हिलाया जा सके। लेकिन
अपने उन तमाम साथियों को निराश करते हुए बस इतना ही बताना है कि ‘ तोमर की....पार्टी
यूं ही चालैगी’
दरअसल इस कहानी में भी पर्दे के पीछे कुछ और
है और सामने कुछ और.......सामने विपक्षी दलों के आरोप नज़र आते हैं, तमाम
दस्तावेज़ नज़र आते हैं, बार काउंसिल की जांच नज़र आती है, यूनिवर्सिटी की चिट्ठी
नज़र आती है और डिफेंसिव मोड में सरकार नज़र आती है। पहली नज़र में लगता है कि
सरकार के पास इस मामले में कोई जवाब ही नहीं है और बिना किसी कारण के सरकार इस
ज़िद पर अड़ी है कि अपने ‘दाग़ी’ मंत्री को हटाएंगे नहीं। दिल्ली में जिस बीजेपी की 3 सीट लाते-लाते सांसें
फूल गई थी वो इस मुद्दे पर हर रोज़ प्रदर्शन कर रही है। आइए पूरे मामले को समझने
के लिए पहले आरोप और पेश किए जा रहे सबूतों को समझ लें।
जितेन्द्र तोमर पर आरोपों की इस पूरी कहानी
पर लोगों को आसानी से यकीन इसलिए हो जाता है क्योंकि जितेन्द्र तोमर की पढाई कई
अलग अलग जगहों पर हुई, कई बार बीच में पढाई छोड़ी और फिर शुरु कर दी। स्कूल
दिल्ली, ग्रेजुएशन उत्तरप्रदेश और कानून की पढाई बिहार से की। ज्यादातर लोग अपनी
पढाई के दौरान लोग इतनी जगह नहीं घूमते इसलिए उन्हें आसानी से इसमें कुछ गड़बड़
नज़र आ गया। रही सही कसर पढाई के बीच अलग अलग वक्त पर लिये गये 5 साल के अंतराल ने
कर दी। अब प्लॉट तैयार है बस कहानी बेचनी बाकी थी। बीजेपी के कुछ नेताओं ने इस
कहानी के तार जोड़ने के लिए तमाम काग़ज़ात इकट्ठे करने शुरु किए और यूपी की यूनिवर्सिटी
से लिखित में प्राप्त कर लिया गया कि डिग्री फर्ज़ी है। फिर भागलपुर से भी
यूनिवर्सिटी से लिख कर आ गया कि कुछ गड़बड है और हंगामा मच गया कि फ़र्ज़ी डिग्री
लिया हुआ एक आदमी कानून मंत्री बना बैठा है।
पर्दे के पीछे की कहानी.....
पहले पहल जितेन्द्र तोमर ने इस मामले को
हल्के में लिया और नकार दिया। लेकिन जैसे जैसे कागज़ात सामने आने लगे तो एक बार के
लिए तो तोमर खुद भी सकपका गए थे। लेकिन जब कोशिश शुरु की गई तो कई ऐसी कडियां जुड
गयी कि तोमर के साथ साथ केजरीवाल भी संतुष्ट हो गए कि कानूनी लड़ाई में वो जीत जाएंगे।
पढाई कहां की या नहीं की ये तो फिलहाल सिर्फ तोमर ही जानते हैं लेकिन कानूनी रुप
से जो तस्वीर बाहर नज़र आ रही है पर्दे के पीछे बिल्कुल वैसी नहीं है। देखिए
कैसे.....
आरोप है कि तोमर की ग्रेजुएशन की डिग्री
फर्जी है और यूपी की यूनिवर्सिटी ने ये लिख कर दे भी दिया है। लेकिन इसकी काट के
तौर पर तोमर के पास कॉलेज का लिखित जवाब और रिकार्ड मौजूद हैं जिसमें कहा गया है
कि तोमर वहीं पढ़े हैं और डिग्री हासिल की है। अब इसके आगे अगर मामला जाता है तो
ये लड़ाई कोर्ट में कॉलेज और यूनिवर्सिटी के बीच की है, तोमर कम से कम इस आरोप से
साफ निकल आएंगे।
दूसरा आरोप है कि भागलपुर से ली गई तोमर की
कानून की डिग्री फर्जी है। इस आरोप को पुख्ता करती है भागलपुर यूनिवर्सिटी की जांच
रिपोर्ट, जिसमें लिखा है कि तोमर के रिकार्ड्स में गड़बड है और दिखाए गए
सर्टिफिकेट फर्जी नज़र आ रहे हैं। इसके जवाब में तोमर ने अपना बेहद पुख्ता बचाव तैयार
कर लिया है। तोमर ने फिर अपने उस कॉलेज से सारे रिकार्ड्स मांगे और जो कुछ मिला
उसे किसी भी कोर्ट में चैलेंज करना बेहद मुश्किल होगा। तोमर के पास लॉ की पढाई के
तीनों साल के मूल रजिस्ट्रेशन रजिस्टर, यूनिवर्सिटी रोल और एक्ज़ाम रिकार्ड की
प्रतियां मौजूद हैं जो उसे लॉ कालेज के पुराने रिकार्ड से आरटीआई के ज़रिए मिली
हैं।
हैरानी की बात तो ये है कि जो डिग्रियां तोमर
की बता कर आरोप लगाए गए हैं दरअसल वो इन डिग्रियों से मेल नहीं खाती जो तोमर के
पास मौजूद हैं। आरोप लगाने के लिए इस्तेमाल की गयी डिग्रियों पर रोल नंबर बदले हुए
हैं जोकि तोमर की मूल डिग्रियां देखने से साफ़ समझ आता है।
दरअसल तोमर और सरकार इस पूरे मामले पर दोहरा
खेल खेल रहे हैं और जानबूझ कर ये सारे दस्तावेज़ मीडिया के सामने नहीं रख रहे। मीडिया और विपक्ष इन आरोपों में इतना उलझा हुआ है कि सरकार को खुलकर
अपना काम करने का मौका मिल रहा है। और जब कोर्ट में ये तमाम सबूत बिना मीडिया में
आए सीधे पेश किए जाएंगे तो ज्यादा असरदार होंगे। मीडिया और विपक्ष झूठा नज़र आएगा
और सरकार अपने खिलाफ मीडिया में चल रही तथाकथित साजिश का रोना फिर से रो सकेगी।
पर्दा गिरता है.....
तोमर की मुश्किलें बढ़ती नज़र आ रही हैं। बार
काउंसिल ने पुलिस को जांच के लिए चिट्ठी लिखी है। तोमर इस पूरे मामले पर खामोश हैं
.....केजरीवाल अपने ‘दागी’ मंत्री पर चुप्पी साधे हुए हैं। लगता है मीडिया और विपक्ष की तमाम कोशिशों
के बावजूद.....’तोमर की...पार्टी यूं ही चालैगी’
1 comment:
Well written. Thanks.
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