7 दिन पंजाब में गुजारने और 3200 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद आखिरकार पंजाब की उस पहेली को डिकोड करने में कामयाबी मिली जिसने बड़े-बड़े रणनीतिकारों, बड़ी-बड़ी सर्वे एजेंसियों को उलझा कर रखा हुआ है।
सतही तौर पर देखने से यह चुनाव एक हंग असेंबली की तरफ बढ़ता हुआ नज़र आता है। लेकिन इस सतह के नीचे युवा खून में जबरदस्त उबाल है, जिसमें किसी भी तख्त को पलट देने का माद्दा है। लेकिन डर और खामोशी की एक परत ने इस पूरे उबाल को ढक रखा है। और यह डर भी बेवजह नहीं है साल 2012 के पंजाब विधानसभा चुनाव में लोगों को लगा था कि सत्ता परिवर्तन होने वाला है इसलिए लोग खुलकर सामने भी आ गए और सत्ता का विरोध भी कर बैठे। लेकिन कांग्रेस अकाली वोटबैंक में सेंध लगाने में नाकाम रही और सत्तारुढ़ दल एक बार फिर सत्ता पर काबिज हो गया। अब बारी उन लोगों से बदला लेने की थी जिन्होंने चुनाव से ठीक पहले सत्ता का विरोध किया था। चुन-चुन कर उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए जिन्होंने चुनाव से पहले सत्तारूढ़ दल का विरोध किया था। यही वजह है कि पंजाब के हर सर्वे के नतीजे ऊटपटांग आ रहे हैं।
लेकिन पिछले 5 सालों में सतलुज में बहुत पानी बह चुका है और अब ऐसी कोई गुंजाइश नहीं बची कि सत्तारुढ़ दल वापस सत्ता में आ सके। यानी तय बस ये होना है कि सत्ता विरोधी वोटबैंक में सेंध कौन लगा रहा है।
पंजाब में इस वक्त वोटर के दिमाग में क्या चल रहा है इसे समझने के लिए आपको वोटर को दो हिस्सों में बांटना होगा। एक वो वोटर जिसकी उम्र 35 साल के नीचे है और एक वो वोटर जिसकी उम्र 50 साल के ऊपर है। इन दोनों वोटबैंक का सोचने और अपने मत के इस्तेमाल का फैसला करने का
तरीका बिल्कुल अलग है। पूरे पंजाब में 35 साल से कम उम्र का वोटर किसी तरह के कन्फ्यूजन में नहीं है। वो पारंपरिक राजनीति को छोड़कर एक नई राह पकड़ने का मन बना चुका है। लेकिन 50 साल से ऊपर की उम्र का वोटर अपनी जड़ों से अलग होता हुआ नजर नहीं आता। बदलाव से घबरा रहा ये वर्ग आज भी उसी पार्टी में यकीन रखता है जिसे वह सालों से वोट करता आया है। इस वोट बैंक का कुछ हिस्सा पहली पार्टी से नाराज होकर दूसरी पार्टी में तो कुछ हिस्सा दूसरी पार्टी से नाराज होकर पहली पार्टी में आ गया है लेकिन बड़ी तस्वीर वैसी की वैसी है। इनके सोचने के तरीके पारंपरिक हैं, वोट किसे दें ये भी पुराने तौर
तरीके से ही सोचकर मन बना रहे हैं।
अब बात रही 35 साल से 50 साल के बीच के वोटर की। यही वो वोट बैंक है जो इस वक्त पंजाब में चुनावी तस्वीर को धुंधला किए हुए है। जो किसी भी पार्टी की तरफ जा सकता है और फिलहाल कन्फ्यूज नजर आता है। यही वोटबैंक कभी 35 साल से नीचे के वोटरों के साथ जुड़कर एक पार्टी को विजयी दिखाता है। तो कभी 50 साल से ऊपर के वोटरों के साथ जुड़कर दूसरी पार्टी की मजबूती की तस्वीर पेश करता है। अब जरा यह भी समझ लीजिए कि इनमें से कौन से वोट बैंक में कितनी ताकत है? इलेक्शन कमीशन
के आंकड़ों के मुताबिक
18 से 35 साल के करीब 80 लाख वोटर हैं।
35-50 साल के करीब 57 लाख वोटर हैं।
और 50 साल के ऊपर के करीब 60 लाख वोटर हैं।
अब
ज़रा ये समझने की कोशिश करते हैं कि इन अलग अलग आयुवर्ग के वोटबैंक के मुद्दे क्या
हैं। ये मुद्दे सीधे तौर पर इनके वोट को प्रभावित कर रहे हैं। मसलन 18-35 साल का
वोटर अपने भविष्य को लेकर चिंतित है......नौकरी नहीं है, काम क्या करेगा, परिवार
सुरक्षित है या नहीं......और इनके छोटे छोटे बच्चों का भविष्य कैसा होगा? इनके पास जोश है, उत्सुक्ता
है और खुद का बनाया अभी तक कुछ न होने के कारण रिस्क लेने का ज़बरदस्त माद्दा भी है।
ये थोड़ी बातचीत के बाद आपको खुलकर बता देते हैं कि ये इस बार किस मूड में हैं। ये
मीडिया से प्रभावित नहीं बल्कि सोशल मीडिया से खेलने वाले वोटर हैं। इनकी च्वाइस नेताओं की उम्र से भी जुड़ी है।
50 साल से ऊपर के वोटरों को अपनी पुरानी सोच और तौर
तरीके बदलने में दिक्कत है। सामाजिक दबाव और सालों से बने रिश्तों ने सोच को
खुलने से रोक रखा है। इसलिए वोट के बारे में बोलने से पहले अपने राजनैतिक दोस्तों
का लिहाज रखते हैं। इनके अपने भविष्य के बारे में चिंता करने लायक अब कुछ नहीं है लेकिन
अपनी युवा पीढ़ी को लेकर ज़बरदस्त भावनाएं हैं। ये आज भी अपने अपने सालों पुराने
कारणों से, अपनी पुरानी पार्टियों में ही उलझे हैं।
35 से 50 साल के बीच का वोटर सबसे ज्यादा दबाव में
है। बसा हुआ परिवार है, चलता काम धंधा या नौकरी है, आगे भी जिंदगी काफी बची है और
रिस्क लेने का रिस्क भी नहीं ले सकते। इसलिए कोई अपना काम हो जाने की वजह से सरकार
से खुश है तो कोई अपना काम निकलवाने के लिए किसी पार्टी से जुड़ा है। नयी सरकार
आयी तो नौकरी का क्या होगा, काम धंधे में फायदा होगा या नुकसान, शांति और सुरक्षा
व्यवस्था पर क्या फर्क पड़ेगा क्योंकि इसका सीधा असर इनके परिवार और रोजगार पर होता है।
ये वोटर कन्फ्यूज़ है, बंटा हुआ है और वोटिंग के दिन तक पता नहीं लग पाएगा कि किसे
वोट करने वाला है।
जो
तस्वीर फिलहाल दिखाई पड़ती है वो युवा और बुजर्ग वोटरों की अलग अलग राय और 35 से
50 साल के वोटर की डर से भरी हुई राय को मिलाकर बनती है। तभी आपको हर सर्वे में एक खास दल अपनी मौजूदा स्थिति से कहीं ज्यादा नज़र आएगा लेकिन वोटिंग में कहीं दूर दूर तक
मुकाबले में नहीं होगा।
मान
लीजिए वोटिंग तक ये तीनों आयुवर्ग इसी हालात पर टिके रहे तो क्या होगा?
पहली पार्टी (18-35
साल + 35-50 का छोटा
हिस्सा)
बनाम
दूसरी पार्टी (50
से ऊपर + 35-50 का बड़ा हिस्सा)
ये कांटे का मुकाबला होगा जिसमें पहली पार्टी सरकार
तो बनाती दिखती है, लेकिन सीटें 60 से 70 के बीच होंगी। तीन दिन तक पंजाब में घूमते हुए, लोगों से बात करते हुए, हम इसी पहेली में उलझे थे कि इस स्थिति के आगे क्या? क्या स्थितियां बदलेंगी? क्या इनमें से कोई वोटबैंक
अपनी सोच से हटेगा या फिर यही पंजाब की असली चुनावी तस्वीर है?
तीसरे दिन मानसा हल्के के एक गांव में चल रही एक
राजनैतिक सभा में मुझे इस पहेली से बाहर आने का पहला हिंट मिला। इस सभा में
ज्यादातर गांव के बुजुर्ग थे और कुछ नौजवान भी मौजूद थे। बातचीत शुरु हुई तो जो
जवाब मिले वो बिना इस बात से प्रभावित हुए कि किस पार्टी की मीटिंग है, ठीक उस
फार्मूले में फिट हो रहे थे जिसपर हमने अभी ऊपर चर्चा की है। दो तीन बुजुर्ग जो
मुझे अपनी पसंद बता चुके थे और युवाओं की भी पसंद बता चुके थे, उनसे बात करते हुए मैंने यूं ही पूछा कि अगर युवा एक
तरफ हैं और बुजुर्ग दूसरी तरफ तो फैसला होगा कैसे.......कौन बदलेगा? क्या आपके परिवार के युवा
आपके कहने से वोट देंगे और सरकार का फैसला हो जाएगा? जवाब ने
तस्वीर से थोड़ी धूल साफ की। बुजुर्ग का थोड़ी देर की खामोशी के बाद जवाब आया “हमारी तो उम्र हो गई अब,
हमें क्या लेना है किसी की भी सरकार आए। होगा तो वही जो बेटे चाहेंगे....अब परिवार
से अलग हम कहां जाएंगे?”
इस तरह का जवाब मुझे पंजाब में तीन दिन बाद मिला था क्र्योंकि चर्चा यहां तक पहुंचती ही नहीं थी और चुनावी मुद्दों में ही उलझ कर रह जाती थी। लेकिन यही वो रास्ता था जो तस्वीर साफ करने की तरफ ले जा सकता था। लेकिन ये सवाल भी था
कि कहीं ये सिर्फ इस बुर्जुर्ग की ही निजि राय तो नहीं थी.....हो सकता है बाकी बुजुर्ग ऐसा
न सोच रहे हों? इस सैंपल के सही होने के लिए इस राय का रीपीट होना ज़रुरी था। अगले
3-4 दिन में हम पंजाब के अलग अलग इलाकों में घूमे.......लंबी, फरीदकोट, अमृतसर, जालंधर, भटिंडा, जलालाबाद,फाजिल्का, लुधियाना, रोपड़, गुरदासपुर, होशियारपुर,
कोटकपूरा, मजीठा, और भी दर्जनों गांव, कस्बे, शहर। मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि पंजाब
चुनाव में जो होने जा रहा है वो ये है।
पहली पार्टी (18-35
साल का बड़ा हिस्सा + 50 साल के
ऊपर का बड़ा हिस्सा)
बनाम
दूसरी पार्टी (35-50
साल का बड़ा हिस्सा)
पंजाब के सारे सर्वे धरे रह जाएंगे, ये चुनाव पंजाब
के इतिहास के सबसे बड़े चुनावी परिणामों में से एक हो सकता है। अगर मेरा अनुमान
सही है तो जितना चुनाव नज़दीक आएगा, 50 साल के ऊपर का वोटर अपनी राय बदलेगा, और
साफ तस्वीर ज़मीन पर भी दिखने लगेगी।
आपने पंजाब में अब तक जितने भी लोगों से बात करके
अपनी राय कायम की हो ज़रा अब एक बार फिर से उनको याद करें, उनकी उम्र और बातों को
याद करें.....शायद आप मेरी बात से सहमत हो जाएं और पंजाब की चुनावी तस्वीर साफ नजर आने लगे।
2 comments:
अनुराग जी, मैं ई बात से बिलकुल सहमत हूँ, इ जो 50 साल से उपर वाला गणित बताया वो बिलकुल ही सत्य है और यही होने वाला है। मैं यंग हूँ और 2017 में ज्यादा कुछ यही फैक्टर रहेगा। मेरे घर में भी यही स्थिति थी यूपी वोटिंग को लेकर पर अब वो बिलकुल भी साफ़ हो गयी है। मेरे पेरेंट्स मेरे साथ सहमत है। 👍
Felt like reading a suspense thriller script of a movie
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