Wednesday, April 15, 2015

स्वराज संवाद का अगला पडाव, बीएमसी चुनाव.....नयी पार्टी की पूरी कहानी

गुडगांव की शुभ वाटिका में करीब एक हज़ार कार्यकर्ताओं की मौजूदगी और नेताओं के तेवर ने ये साफ कर दिया कि अब पार्टी का नाम और चिन्ह तय होना ही बाकी है। इन औपचारिकताओं को भी समय के साथ पूरा कर लिया जाएगा। लेकिन पर्दे के पीछे जाने से पहले सीन समझना बेहद ज़रुरी है।

करीब एक हज़ार कार्यकर्ता मौजूद हैं जो देश के अलग अलग हिस्सों से गुड़गांव पहुंचे हैं....बडी बात है। भीड होती तो शक्ति प्रदर्शन का नाम दिया जाता लेकिन इतनी संख्या में अलग अलग जगह से आये कार्यकर्ताओं की मौजूदगी साफ इशारा कर रही थी कि कार्यक्रम को एक योजना के तहत खास तरीके से आयोजित किया गया है। अलग अलग राज्यों से आए कार्यकर्ताओं से बात करने के लिए 60 टीम कॉर्डिनेटर भी बनाए गए। पूरे आयोजन को सुचारु तरीके से चलाने के लिए आईटी टीम, ऑर्गेनाइजिंग टीम बनाई गई थी। एनआरआई सदस्यों के विडियो मैसेज भी थे। कार्यक्रम में एंट्री के करीब डोनेशन बॉक्स भी रखे गये और पंडाल में चंदा इकट्ठा करने के लिए चादर भी घुमाई गई। यानि पूरी तस्वीर को कतई उस सबसे अलग नहीं दिखने दिया गया जो ये तमाम कार्यकर्ता और मीडिया, अन्ना आंदोलन से आम आदमी पार्टी तक के सफर में देखते रहे हैं।

मंच से लगातार वक्ता ये बताते रहे कि कैसे स्वराज के असली सिद्धांत वो नहीं हैं जो आम आदमी पार्टी में चल रहे हैं बल्कि वो हैं जो स्वराज संवाद के पूरे कार्यक्रम में दिखाई दे रहे हैं। योगेन्द्र यादव हमेशा की तरह फिर से मंच छोड कर कार्यकर्ताओं के बीच बैठे रहे, ये यकीन दिलाने के लिए कि वो बदले नहीं हैं...बस वक्त बदल गया है।

इसी बीच प्रोफेसर आनंद कुमार मीडिया से बात करते हुए बार बार ये कह रहे हैं कि नयी पार्टी रोज़ रोज़ नहीं बनती....हम आम आदमी पार्टी में ही रहेंगे। ये आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का ही स्वराज संवाद कार्यक्रम है।

मंच से पहले प्रशांत भूषण बोले तो कुछ ऐसा बोल दिया जो वहां मौजूद कई कार्यकर्ताओं को भी अटपटा सा लगा। प्रशांत भूषण ने कहा कि हमारे पास एक विकल्प ये है कि हम कोर्ट में जाकर आम आदमी पार्टी का चिन्ह छीन लें....नाम छीन लें....क्योंकि ये हमारी पार्टी है और कुछ लोगों ने इस पर कब्ज़ा कर लिया है। वहां मौजूद किसी भी कार्यकर्ता को शायद ही प्रशांत जी के इस दावे पर शक हो, क्योंकि हर कोई प्रशांत जी की कानूनी समझ और पकड़ से बखूबी वाकिफ़ है। लेकिन फिर इसके बाद जब प्रशांत जी ने कहा कि हम कोर्ट नहीं जाएंगे तो पहली बार पुख्ता तौर पर अहसास हुआ कि नयी पार्टी की नींव रख दी गई है।

फिर योगेन्द्र यादव मंच से बोले और कहा कि दिल्ली मैदान में बिछे एक छोटे से रुमाल की तरह है......हमारे काम करने के लिए बाकी का पूरा मैदान खाली पड़ा है। इसलिए केजरीवाल सरकार से टकराएं नहीं...उन्हें दिल्ली में अपना काम करने दें।

अंत में वोटिंग हुई जिसमें 25 फीसदी ने तुरंत पार्टी बनाने को कहा तो 70 फीसदी ने कहा कि पार्टी के भीतर ही लड़ते हैं और कुछ समय बाद दोबारा बैठक कर निर्णय लेंगे। और फिर पास हुआ एक प्रस्ताव जिसमें 49 लोगों की कमेटी को स्वराज आंदोलन के बैनर तले आंदोलन चलाने, संगठन बनाने और निर्णय लेने का अधिकार दे दिया गया।

पर्दे के पीछे की कहानी

पार्टी बनाने का निर्णय लिया जा चुका है लेकिन सही समय और माहौल के लिए इंतज़ार करना पड़ रहा है। विवाद की शुरुआत में प्रशांत भूषण कोर्ट जाना चाहते थे क्योंकि आम आदमी पार्टी ने बागियों के खिलाफ जो भी फैसले लिए हैं उनमें कानूनी तौर पर कई बड़ी खामियां हैं। लेकिन एक बार जब ये फैसला लिया गया कि नयी पार्टी बनाई जाए को काफी मशक्कत करके प्रशांत जी को समझाना पड़ा कि कोर्ट की राह पर जाने से पार्टी पर कब्जा हासिल करने की तस्वीर सामने आयेगी जोकि व्यक्तिगत लड़ाई जैसा लगेगा। इस सबसे नयी पार्टी बनाने के लिए न तो कार्यकर्ता मिल पाएंगे और न ही सही राजनैतिक माहौल मिल पाएगा। ये और बात है कि सिर्फ बागी नेताओं ने ही नहीं बल्कि आम आदमी पार्टी में भी बहुत से लोगों ने प्रशांत भूषण के कोर्ट नहीं जाने के फैसले से राहत की सांस ली है।

नयी पार्टी बनाने के लिए नेता चाहिये, कार्यकर्ता चाहिये, पैसा चाहिये, संसाधन चाहिये, संगठन चाहिये और ऊर्जा चाहिये। योगेन्द्र यादव इन सारी बातों से बखूबी वाकिफ हैं। नये संगठन के लिए कार्यकर्ता वो लोग बन रहे हैं जो अपनी अपनी वजहों से आम आदमी पार्टी को आदर्शों से भटका हुआ मान रहे हैं। शुरुआत में पैसे की समस्या सुलझाने में शांति भूषण जी मदद कर देंगे जैसे आम आदमी पार्टी बनने के वक्त किया था। संसाधन जुटाए जा सकते हैं यही दिखाने के लिए स्वराज संवाद का आयोजन किया गया था। संगठन 49 लोगों की कमेटी (जो बाद में नयी पार्टी की कार्यकारिणी में तब्दील हो जाएगी) के ज़रिए तय करने की दिशा में कदम बढा लिया गया।

इन सारी कडियों को जोड़ने के लिए चाहिये एक नेता। प्रशांत भूषण अपने कानूनी मसलों में इतने उलझे रहते हैं कि पार्टी के शीर्ष नेता तो हो सकते हैं लेकिन पूर्णकालिक नेता नहीं। शायद इसलिए योगेन्द्र यादव ने मोर्चा संभाला और खुद को इस स्थान के लिए प्रस्तुत कर दिया। मंच से ये एलान किया कि मैंने अपने परिवार से बात कर ली है। आज के बाद जितना भी मेरा जीवन बचा है उसके हर दिन के 24 घंटे वैकल्पिक राजनीति तैयार करने में लगाऊंगा। इतना ही नहीं किसी कार्यकर्ता के मन में कोई शक न रहे इसलिए इशारा भी कर दिया कि आज से ही हम राजनीति के एक नये रास्ते पर निकल चुके हैं। किसी पार्टी को खड़ा करने के लिए और कार्यकर्ताओं में अपनी स्वीकार्यता स्थापित करने के लिए बेहद ज़रुरी है कि कोई नेता अपना निजि जीवन और परिवार त्याग कर लोगों के लिए काम करने का भरोसा जगाए। यही योगेन्द्र यादव ने भी करने की कोशिश की।

आम आदमी पार्टी की मैसूर टीम से स्वराज संवाद में पहुंचे विनोद एमएस ने मंच से कहा कि अगर समझौता नहीं हो सकता है तो फिर केजरीवाल दिल्ली चलाएं और योगेन्द्र यादव जी को संयोजक बना दिया जाए। इस हुंकार पर तालियां भी बजी और नारे भी लगे। इसे कोई भी आसानी से आवेश में कही गयी बात समझ सकता है अगर उसे ये न पता हो कि स्वराज संवाद से एक दिन पहले प्रशांत जी के घर जिन 10-15 लोगों की बैठक हुई उनमें ये विनोद जी भी मौजूद थे। ऐसे में इन्हें ये समझा देना मुश्किल बात तो नहीं थी कि संयोजक पद पर विवाद नहीं है और इसका ज़िक्र ज़रुरी नहीं है। लेकिन ये ज़िक्र ज़रुरी था क्योंकि मौजूद कार्यकर्ताओं को योगेन्द्र यादव में नयी पार्टी के संयोजक और नेतृत्व की छवि अभी से दिखानी थी।

यानि पार्टी बनाने के सारे तत्व मौजूद हैं तो फिर पार्टी का एलान क्यों नहीं हुआ? इसकी वजह है आखिरी तत्व, जो बेहद ज़रुरी है......ऊर्जा। बहुत से कार्यकर्ता फिलहाल नाराज़ तो हैं लेकिन उनमें वो हौसला नहीं है कि दोबारा सड़क पर उतर कर नयी पार्टी को खड़ा कर सकें। योगेन्द्र यादव पिछले 2-3 सप्ताह में देश के अलग अलग हिस्सों में घूमे हैं, कार्यकर्ताओं से मिले हैं और उन्हें ये बखूबी पता है कि अगर इस वक्त पार्टी का एलान किया गया तो पार्टी दफ्तर में ही सिमट कर रह जाएगी। राजनैतिक उर्जा चुनाव करीब देखकर या मुद्दों पर संघर्ष के दौरान पैदा होती है। योगेन्द्र यादव को राजनीति की खूब समझ है। इसलिए पार्टी की घोषणा करने की बजाय उन्होंने इन दोनों रास्तों पर आगे बढने का फैसला किया।

स्वराज आंदोलन के ज़रिए अलग अलग मुद्दों पर देश भर में आंदोलन चलाकर राजनैतिक ज़मीन तलाशने की कोशिश की जाएगी। और जैसे ही किसी मुद्दे पर राजनैतिक ज़मीन तैयार होती दिखेगी, उसी ज़मीन पर अपनी नयी पार्टी का दफ्तर बना देंगे।

अगर ऐसा नहीं हो पाया तो विकल्प भी तैयार रखा गया है। बहुत से लोग ये सोचकर हैरान हैं कि मयंक गांधी जो इस पूरे विवाद पर इतने मुखर होकर बोले थे वो और उनकी पूरी टीम अचानक पार्टी के भीतर स्वराज कायम करने के इस संघर्ष से गायब कैसे हो गई। जी हां, सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके मुताबिक मुंबई टीम ही बैकअप प्लान है। कुछ वक्त बाद ही बीएमसी चुनाव हैं जिसे लेकर मयंक काफी सक्रीय और मुखर हैं। अगर आम आदमी पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व बीएमसी चुनाव लड़ने से इनकार करता है को मुंबई टीम बग़ावत करके चुनाव लड़ने का फैसला भी कर सकती है और यही वो राजनैतिक उर्जा हो सकती है जिसपर नयी पार्टी का शिलान्यास कर दिया जाए।

पर्दा गिरता है।

योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, प्रोफेसर आनंद कुमार जैसे बागी नेताओं को स्वराज संवाद के चलते पार्टी से निकाल दिया गया है। ये सभी नेता स्वराज संवाद में कुछ भी पार्टी विरोधी नहीं होने का दावा कर रहे हैं। इनका कहना है कि इस मनमाने फैसले के खिलाफ वो कार्यकर्ताओं के बीच जाएंगे। हमारे बाकी साथी पार्टी के भीतर रहते हुए संघर्ष जारी रखेंगे।

49 सदस्यीय नवनिर्मित स्वराज कमेटी ने देश भर में स्वराज संवाद आयोजित करने का कार्यक्रम तय किया है। इसके तहत अगला स्वराज संवाद हरियाणा आयोजित किया जाएगा।


वैसे मुझे जानकारी मिली है कि नयी पार्टी के लिए कई नामों के सुझाव भी पहुंच चुके हैं। मसलन आम जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी (यूनाइटेड), आपकी अपनी पार्टी इत्यादि इत्यादि....