Sunday, May 17, 2015

दिल्ली की ‘अजीब जंग’

दिल्ली में फिलहाल जो कुछ चल रहा है उसे देखकर ये साफ समझ आता है कि केजरीवाल सरकार के तीन महीने के कामकाज और सरकार चलाने के तरीके ने सिस्टम की चूलें हिला दी हैं। वरना ऐसा भी क्या कि जिस लोकतांत्रिक ढांचे में पूरा देश चुनी हुई सरकार की मर्जी से चलता है, राज्य चुनी हुई सरकार की मर्जी से चलते हैं, वहां दिल्ली में अब भी वायसराय सिस्टम ज़िंदा नज़र आ रहा है। दिल्ली के 1.5 करोड़ लोगों ने ऐसा क्या गुनाह कर दिया कि उनके वोट की वो कीमत नहीं जो देश के किसी भी और हिस्से में रहने वाले मतदाता की है। ये सच है....क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो नियुक्त किए गए एक व्यक्ति का आदेश कतई 1.5 करोड़ लोगों द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों की राय पर हावी नहीं हो सकता। कानून उसे पढ़ने वाले के नज़रिए के हिसाब से तोड़े मरोड़े जाते रहे हैं लेकिन इस बात से शायद ही किसी को इनकार हो कि भारत के संविधान की मूल भावना चुनी हुई सरकार को फैसले लेने का हक़ देती है।

दिल्ली की इस अजीब जंग को समझने से लिए ज़रुरी है कि पहले वो चश्मा उतारा जाए जो फिलहाल मौजूद तस्वीर दिखा रहा है। तस्वीर में फिलहाल यही नज़र आ रहा है कि मानो दिल्ली के उपराज्यपाल और दिल्ली के मुख्यमंत्री के बीच ठनी हो। मानो इन दोनों के अहंकार टकरा रहे हों या फिर दोनों के संविधान को समझने में बड़ा अंतर हो। लेकिन अगर ये चश्मा उतार कर देखें तो दिखेगा कि टकराव उपराज्यपाल और मुख्यमंत्री के बीच है ही नहीं। क्योंकि ये संभव ही नहीं कि प्रचंड बहुमत से जीत कर आयी किसी सरकार से एक नियुक्त किया गया व्यक्ति निजि तौर पर सीधी टक्कर ले ले। दरअसल उपराज्यपाल का सिर्फ कंधा भर है।

दिल्ली का कामकाज संविधान और नियमों की तीन किताबों के आधार पर चलता है। भारत का संविधान, GNCTD Act और TBR..... इन सभी को जोड़कर पढा जाए तो एक तस्वीर साफ़ होती है कि दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है। दिल्ली को ज़मीन, पुलिस और कानून व्यवस्था पर फैसले लेने का अधिकार नहीं दिया गया है। लेकिन इसका ये मतलब कतई नहीं कि फैसला किसी चुनी हुई सरकार की बजाय एक नियुक्त किया गया व्यक्ति लेने लगे। दरअसल देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली को विधानसभा देने के बावजूद, इन विषयों पर फैसला लेने का अधिकार केंद्र की चुनी हुई सरकार के पास रखा गया है। और केंद्र उपराज्यपाल के ज़रिए इन तीनों विषयों पर उचित फैसले ले भी सकता है, लेकिन एलजी खुद ये फैसले लेने लगे तो इसे कितना जायज़ कहा जाएगा?

अब ताज़ा विवाद पर आते हैं। आखिर ये विवाद है क्या? क्या ये विवाद इन तीनों विषयों से जुड़ा है जिनपर फैसला लेने का अधिकार केंद्र के पास है? कुछ लोग कहते हैं कि ये विवाद सीएम केजरीवाल के एक आदेश से शुरु हुआ। लेकिन क्या वाकई सारा विवाद किसी एक मुद्दे को लेकर है?

पहला विवाद - केजरीवाल ने एलजी नजीब जंग को ख़त लिखकर ये कहा कि केंद्र के पास जो तीन विषय हैं उनपर मुख्यमंत्री को भी राय ली जानी चाहिये। ये ठीक है कि नियमों के मुताबिक इन तीन विषयों पर अंतिम फैसला केंद्र सरकार को लेना है लेकिन उन्हीं नियमों में ये भी लिखा है कि फैसला लेने की प्रक्रिया में मुख्यमंत्री से भी राय ली जा सकती है। उस राय को मानना या न मानना केंद्र के ही हाथ में रहेगा। लेकिन उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री की इस मांग को सिरे से ख़ारिज कर दिया। देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में इन तीन विषयों पर केंद्र को फैसले लेने का अधिकार देना प्रशासनिक मजबूरी तो हो सकती है लेकिन दिल्ली के बारे में हो रहे फैसले पर दिल्ली के 1.5 करोड़ लोगों के प्रतिनिधि से राय भी न ली जाए तो बात समझ नहीं आती है।

दूसरा विवाद- केजरीवाल ने पहले ख़त के कुछ दिनों बाद सरकार के सभी विभागों के लिए एक आदेश जारी किया कि ‘transferred subjects’ यानि तीन विषयों को छोड़कर बाकी सभी विषय जो दिल्ली राज्य को हस्तांतरित कर दिए गए हैं, उन विषयों से जुड़ी सभी फाइलें उपराज्यपाल को भेजने की ज़रुरत नहीं है। नियमों में साफ लिखा है कि जैसे तीन विषयों पर अंतिम फैसला लेने का अधिकार केंद्र को है बाकी सभी विषयों पर फैसला लेने का अधिकार दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास होगा। लेकिन उपराज्यपाल ने इस मामले में भी आदेश जारी किया कि सभी फाइलें उन तक भेजी जानी चाहिये। यानि दिल्ली की चुनी हुई सरकार द्वारा लिये गए हर फैसले की फाइल मंजूरी के लिए, नियुक्त किए गए उपराज्यपाल साहब के पास जानी चाहिये। ये अलग बात है कि अपने अधिकारों के लिए जूझ रही दिल्ली सरकार ने उपराज्यपाल के इस आदेश को मानने से इनकार कर दिया।

तीसरा विवाद – दिल्ली के मुख्य सचिव 10 दिन की छुट्टी पर गए तो सवाल उठा कि इस दौरान कौन अधिकारी कार्यकारी मुख्य सचिव के तौर पर काम करेगा। मुख्य सचिव मतलब मुख्यमंत्री का दाहिना हाथ। जो भी काम या आदेश मुख्यमंत्री जारी करेंगे वो मुख्य सचिव के द्वारा ही कार्यान्वित किए जाएंगे। ऐसे में ये माना जाता है कि मुख्य सचिव ऐसे अधिकारी को होना चाहिये जिसपर मुख्यमंत्री का पूरा भरोसा हो। हर राज्य के मुख्यमंत्री को उसकी पसंद का मुख्य सचिव रखने का अधिकार है बशर्ते वह अधिकारी इस काम के लिए उपलब्ध हो। सरकार की तरफ से परंपरागत तरीके से दिल्ली के कार्यकारी सचिव की नियुक्ति के लिए 5 सबसे सीनियर अधिकारियों के नाम भेजे गए। इनमें से एक नाम शकुन्तला गैमलिन का भी था जिसे सरकार की आपत्ति के बावजूद उपराज्यपाल ने कार्यकारी मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया। अब आप ही बताइये कि इस बात से एलजी नजीब जंग का क्या लेना देना कि सरकार चलाने के लिए मुख्यमंत्री किस अधिकारी को क्या ज़िम्मेदारी देते हैं। उपराज्यपाल घर के बड़े की तरह होता है और उसे सम्मान देने के लिए ये परंपराएं रखी गई हैं कि जो भी फैसला चुनी हुई सरकार ले उस पर हस्ताक्षर करवाकर उपराज्यपाल को सम्मान बख्शा जाए।

चौथा विवाद – दिल्ली की एंटी करप्शन ब्रांच ने दिल्ली पुलिस के अधिकारी को रिश्वत लेते रंगे हाथों पकड़ लिया। दिल्ली के उपराज्यपाल ने तुरंत चिट्ठी लिखकर एसीबी को इस जांच से हटने को कहा और ये कहते हुए  केस पुलिस को सौंपने का निर्देश दिया कि दिल्ली पुलिस के अधिकारियों से जुड़ा कोई भी मामला एंटी करप्शन ब्रांच के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। ये अलग बात है कि तमाम दबाव के बावजूद सरकार पीछे नहीं हटी और रिश्वतखोर पुलिस अधिकारी को नहीं छोड़ा। बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी दिल्ली पुलिस को इस मामले पर फटकार लगाते हुए अधिकार क्षेत्र के बारे में लगाई गई याचिका खारिज कर दी। यानि एंटी करप्शन ब्रांच का उस पुलिस अधिकारी को पकड़ना कानूनी रुप से सही था तो फिर एलजी साहब अपने पद का इस्तेमाल कर क्यों इस केस को एसीबी से छीनना चाहते थे?

दिल्ली की हालत फिलहाल उस मकान की तरह है जिसमें नया मालिक शिफ्ट हुआ है। लेकिन चौकीदार ये जताने में लगा है कि घर में कौन आएगा, कब आएगा और कौन रहेगा ये चौकीदार तय करेगा क्योंकि दरवाज़ा उसी को खोलना है। खैर चौकीदार और मालिक को गंभीरता से मत लीजिएगा सिर्फ भाव समझाने के लिए लिखा है।


वैसे केजरीवाल दिल्ली के पहले ऐसे मुख्यमंत्री नहीं हैं जो उपराज्यपाल की मनमानी से परेशान हुए हों। अपने अपने वक्त पर मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और शीला दीक्षित अधिकार नहीं होने का रोना रो चुके हैं। ये अलग बात है कि वो बस बयान देकर रह गए और केजरीवाल ने अपना जायज़ हक पाने के लिए बवाल खड़ा कर रखा है। 

पर्दे के पीछे.....

ज़रा गौर कीजिए कि

केंद्र में सरकार आने के बाद बीजेपी ने ज्यादातर राज्यों में उपराज्यपाल बदल दिए लेकिन दिल्ली में नहीं....क्यों?

13 मई 2015 से दिल्ली एंटी करप्शन ब्रांच ने गैस की कीमतों की बढौतरी में घोटाले की जांच के सिलसिले में रिलायंस के कई बड़े अधिकारियों से पूछताछ शुरु कर दी है।

दिल्ली में रिलायंस ग्रुप की बिजली कंपनी को 11000 करोड़ रुपये का लोन चाहिये जो सरकार की गारंटी के बिना नहीं मिलेगा। खूब जद्दोजहद के बाद भी सरकार लोन गारंटी देने को तैयार नहीं है।

बिजली कंपनियां 12 हज़ार करोड़ रुपये का नुकसान दिखाकर बिजली के रेट बढाने की मांग करती रही हैं। लेकिन अब सरकार इस 12 हज़ार करोड़ के नुकसान पर ही सवाल उठाने वाली रिपोर्ट ला रही है।

बिजली कंपनियों की सरकार को ब्लैकमेल करने की कोशिश भी फेल हो गई है और सरकार ने ब्लैकआउट की हालत में ज़िम्मेदार बिजली कंपनी की छुट्टी करने के लिए बैकअप प्लान बना लिया है।

सूत्रों के मुताबिक बिजली कंपनियों की सीएजी जांच का शुरुआती दौर पूरा हो चुका है और जांच में सीएजी ने कई खामियां पकड़ी हैं।

केजरीवाल सरकार रहेगी तो ये लिस्ट लंबी होती जाएगी। 67 सीटों के साथ बनी सरकार का कुछ बिगाड़ पाना ज़रा मुश्किल काम है। लेकिन राजनीति में खुद को धुरंधर समझने वाले कुछ लोगों को लगता है कि केजरीवाल को अगर भड़का दिया जाए तो दिल्ली सरकार कुछ ग़लत या असंवैधानिक कदम उठा सकती है। और अगर ऐसा हो गया तो ऊपर दी गई लिस्ट न सिर्फ गोपनीय रह जाएगी बल्कि लंबी भी नहीं होगी। इस योजना के लिए इन लोगों का रोल मॉडल 49 दिन की सरकार, रिलायंस पर हुई एफआईआर के बाद का बवाल और परेशान होकर केजरीवाल सरकार का इस्तीफ़ा है।

खैर सिस्टम में बदलाव की कोशिश और विवादों का तो पुराना रिश्ता है। जब भी कभी ज़मीन खोदकर पानी निकालने की कोशिश होती है तो गड्ढे के किनारों की मिट्टी बार बार गिरती रहती है और पानी निकालने से रोकने की कोशिश करती रहती है। लेकिन महज़ तब तक, जब तक उस गड़ढे में पानी न निकल आए। सिस्टम भी गड्ढे के किनारे की उस मिट्टी की तरह ही है।  

पर्दा गिरता है.....

केजरीवाल सरकार ने दी उपराज्यपाल के अधिकारों को चुनौती। मुख्यमंत्री और उपराज्यपाल में फिर टकराव.......राष्ट्रपति की संविधान का सम्मान करने की सलाह। केंद्र ने उपराज्यपाल से कहा, केजरीवाल सरकार के दबाव में न आएं.........






29 comments:

meet sugat said...

Awesome

what I learnt today? said...

superb analysis....

what I learnt today? said...

wow analysis

Anonymous said...

thanks for nicely written article...

Anonymous said...

As usual, bang on the target....superb...keep enlightening us...

Anonymous said...

Great job..I try yo see beyong media fear mongering and this helps give a logical reasoning. Please continue writing.

Anonymous said...

5 अफसरों के नाम किसने भेजा?
क्या चुना गया अफसर उन्हीं में से एक नहीं है?
क्या उक्त अधिकारी पर भ्रष्टाचार का मामला नहीं बनता है, अगर वह नियम विरुद्ध किसी कम्पनी को फायदा पहुंचाने की कोशिश कर रही थी?
इस तरह के किसी जिम्मेदारी वाले पद को कितने समय तक खाली रखा जा सकता है?
यश्ह नियुक्ति क्या सिर्फ दस दिनों के लिये नहीं है?
जितनी ऊर्जा इस विवाद में लगाया जा रहा है, क्या उसे किसी सकरात्मक कार्य में नहीं लगाया जा सकता था?

बस कुछ ऐसे प्रश्न अनुत्तरित रह गए, बाकी 'आप' सरकार की कमियों को ढकने का उत्तम प्रयास है।

Anonymous said...

दिल्ली के हर नागरिक तक यह सच्चाई पहुंचनी जरूरी है! मोदी सरकार, रिलायंस और उनके पालतू वफादार अफसर देश को नोच कर खा रहे हैं!

Anonymous said...

पब्लिक को गुमराह करने का प्रयास। निन्दनीय।

Anonymous said...

well written. Objective analysis. Tks.

Anonymous said...

Five officers were the senior most. Its is clear in above article.

Anonymous said...

Sir, it is our present system in which we live. Don't get so angry. And this fight is making us sensitive towards the political affairs which is the biggest success for India. Change is coming. Our leaders are just our reflection.

Anonymous said...

So one of them chosen and this list was prepared by whom? AAP government.

jamal said...

well written

ss said...

Article shows that ak creates 'bawaal' as per habit. #Aaptards think they got a super powerful king and so they support him blindly. Now reality has dawned on them. Their megalomaniac king is not 'maalik' at all.... And the delhi governor is not at all a 'chowkidaar'. Chalo jab aankh khule tabhi savera. Wake up #AAP. Do some good work for greedy delhiites. Your honeymoon period is over already

Unknown said...

Better explanation and full understood

Narender said...

Superb article

RUM said...

बेबुनियाद लेख, चूतिया लेखक और उस से भी बड़े चूतिये कमेंट करके तारीफ करने वाले. रिलायंस पर कौन सा केस करेगा जब गैस के दाम बढे ही नहीं? अकल के अंधे हैं सब

Anonymous said...

Nice article.

Anonymous said...

The list was given by the centre.
Shakuntala Gamlin is a board member of BSES.
How can she take neutral decisions on the part of government while being close to a private company?

Nifty Crazy said...

bulls eye

Sushma Nagpal said...

Meena ji i fully agree with you. AK is not for sale n he will confront anyone to keep the interests of Delhiites intact. Delhiites trust him fully. That is why they gave him huge mandate and he is working 24 hours for making Delhi a world class city. This is possible only if he never ever allow anyone corrupt.

We are with AK and people of India love him for his unique quality of 0 tolerance for corruption.

Anonymous said...

wow 5 person is more dominant to you,....

12000 cr is negligible ,...............

Some one is trying to make your kids future better ,...

Atleast appreciate.

Anonymous said...

Excellent

harsh said...

Writer must be either pro AAP or AAP memebr itself. Looks like a journalist who is following same path what Ashutosh did.

Have you also written any article on Sad demise of Mr Gajendra ? Was BJP / Najeeb Jung also responsible for that ?

Anonymous said...

cvc has not been appointed ..can that post be left vacant.if that post can be left vacnt then why so much bawal for this post for just 10 days
modi is fearing that hisrelatives reliance group are going to lose so he is doing all these tacticcs

Unknown said...

hope is alive, great compilation, good work

thank you

Anonymous said...

Where did you get your education? People who have different opinion and judgment are not retards. Mind your language.

Anonymous said...

Well written bro.... Keep writing the inside stories and aware peoples with the facts...