Monday, November 9, 2009

राज ठाकरे को कोटि कोटि धन्यवाद....


सुनने में अजीब लगेगा मगर मैं वाकई राज ठाकरे को धन्यवाद कहना चाहता हूं क्योंकि अनजाने में ही सही उसने मुझे एक ऐसे सच से रुबरु करा दिया जिसके बारे में मुझे अंदाज़ा भी नहीं था। मुझे वाकई अंदाज़ा नहीं था कि मेरे इर्द गिर्द रहने वाले हज़ारों प्राणी ऐसे हैं जो खुद को इस देश का नागरिक तो कहते हैं मगर देश के संविधान से कोई ख़ास इत्तेफ़ाक नहीं रखते। मुझे ये तो मालूम था कि इस देश में राष्ट्रीय चिह्नों, राष्ट्रीय प्रतीकों का कितना 'सम्मान' किया जाता है लेकिन मैं इस बात से बिल्कुल अंजान था कि यहां किसी को ये नहीं पता कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है। हिन्दी भाषी प्रदेशों में रहने वाले लोग इस भाषा से लगाव की वजह से ऐसा मान बैठे हों, ये मैं समझ सकता हूं....हालांकि ये वही लोग हैं जो अंग्रेज़ी को हिन्दी से ज़रा ज्यादा इज्जतदार भाषा समझते हैं। खैर बात राष्ट्रभाषा की हो रही है तो बता दूं कि इस देश की अभी तक कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 343 के मुताबिक हिन्दी भारत(केन्द्र) की राजभाषा है। केंद्र के शासकीय कामकाज में इस भाषा का प्रयोग किया जाएगा, ऐसा संविधान में कहा गया है। अब आप कहेंगे कि अगर हिन्दी देश की राजभाषा है तो देश के हर राज्य की भी तो राजभाषा हुई। लेकिन ज़रा रुकिये जनाब, ऐसा नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 345 में ये साफ़ कहा गया है कि प्रत्येक राज्य वहां बोली जाने वाली भाषा को अपनी राजभाषा घोषित करेगा और अगर किसी राज्य की राजभाषा घोषित नहीं की गई है तो ऐसी स्थिति में हिन्दी को उस राज्य की राजभाषा के रुप में इस्तेमाल किया जा सकता है। तो ये साफ़ हुआ कि हिन्दी को किसी राज्य की राजभाषा पर किसी तरह की वरिष्ठता प्राप्त नहीं है। अब कुछ लोगों का बेतुका तर्क ये है कि जब हिन्दी को राजभाषा बना दिया गया तो फिर राष्ट्रभाषा भी उसी को माना जा सकता है। मुझे लगता है कि ऐसा सोचना इस देश का संविधान बनाने वाली संविधान सभा के सदस्यों की समझ पर सवाल खड़ा करना होगा क्योंकि इस मुद्दे पर बहस तो संविधान बनाते वक्त भी हुई थी फिर क्यों आखिर हिन्दी को राष्ट्रभाषा नहीं बनाया गया। एक लंबी बहस के बाद संविधान सभा में यह तय किया गया था कि भारत में कई प्राचीन भाषाएं हैं जो पूरी तरह विकसित हैं और बड़े जनसमूह द्वारा बोली जाती हैं इसलिए किसी एक भाषा को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा नहीं दिया जा सकता। हिन्दी को तो शुरुआती 15 सालों के लिए राजभाषा भी नहीं बनाया गया था। राजभाषा और राष्ट्रभाषा को अपनी सहूलियत के हिसाब से एक ही समझने वाले अगर इसके शाब्दिक अर्थ पर ध्यान दें तो समझ जाएंगे कि राजभाषा केवल राजकाज की भाषा होती है और राष्ट्रभाषा देश का प्रतीक और पहचान, दोनों में बड़ा फ़र्क है। और जिन्हें ये फ़र्क समझ नहीं आता वो राज ठाकरे की मानसिकता वाले लोग हैं फिर चाहे वे हिन्दी भाषी लोग हो या मराठी बोलने वाले।

1 comment:

BnB Specialist said...

Bohot khoob dhanda bhai...dard hai tumhari lekhni mei...lage raho..nice blog.