Friday, December 18, 2009

CAT का शर्मनाक सच....

करीब 20 हज़ार स्टूडेंट्स के लिए CAT इस बार महज़ ख्वाब बनकर रह गया। इसलिए नहीं कि इस मुकाबले के लिए वो तैयार नहीं थे बल्कि इसलिए क्योंकि परीक्षा के आयोजकों की तैयारी में ही कमी थी। इस परीक्षा का पूरा सच क्या है और वो कितना शर्मनाक है ये बताने से पहले वो तमाम झूठ जानना बेहद ज़रुरी है जो इस परीक्षा से पहले और इसके दौरान बोले गये।

पहला झूठ - हर अखबार, हर एक टीवी चैनल यहां तक की बीबीसी ने भी इस झूठ में शिरकत की। झूठ ये कि कैट की परीक्षा ऑनलाइन है। अरे जनाब ज़रा आयोजकों से तो पूछ लिया होता कि परीक्षा ऑनलाइन है भी या नहीं। बस कंप्यूटर दिखा नहीं कि लगे ऑनलाइन ऑनलाइन चिल्लाने....खुद तो मूर्ख बने ही पूरे देश को भी गुमराह कर दिया।

दूसरा झूठ - कैट के पहले दिन से ही हज़ारों स्टूडेंट परेशान होने लगे। तीसरे दिन तक करीब 20 फ़ीसदी छात्र किसी न किसी वजह से परीक्षा नहीं दे पाए। खुद को घिरते देख प्रॉमिट्रिक (वो कंपनी जिसने ये परीक्षा करवायी) ने एक आसान झूठ का सहारा लिया और पहले झूठ से गुमराह हो चुकी देश की जनता को आसानी से यकीन दिला दिया कि वायरस हमले की वजह से परीक्षा में गड़बड हो गई। अब हमारे देश में तो वैसे ही बहुत पढे लिखे लोग हैं कंप्यूटर परीक्षा में वायरस की बात हुई तो सोचा कि छोड़ो यार बड़े लेवल की बात है। और इस तरह कंपनी का दूसरा झूठ कामयाब हो गया।

लेकिन ये वायरस स्टूडेंट्स के कंप्यूटर तक पहुंचा कैसे क्योंकि कैट की परीक्षा तो ऑनलाइन है ही नहीं। दरअसल परीक्षा से पहले पेपर को रुम सर्वर के ज़रिये कंप्यूटर पर डाउनलोड कर लिया जाता है और उसके बाद परीक्षा पूरी होने तक इंटरनेट का कोई इस्तेमाल नहीं होता। जब परीक्षा के दौरान कंप्यूटर इंटरनेट से जुडे ही नहीं होते तो फिर ये वायरस कंप्यूटर्स तक पहुंचे कैसे? और इत्तेफ़ाक देखिये कि देशभर के 50 अलग अलग सेंटर पर एक ही वक्त वायरस पहुंचे और वो भी सब जगह वही दो वायरस 'निम्डा' और 'कॉन्फिकर' बताया है। ये दो टके के वायरस जो सालों पुराने हैं जिन्हें किसी भी एंटी वायरस से पकड़ा जा सकता है उनके सिर पूरा ठीकरा फोड़ दिया गया। लेकिन कोई मुझे ज़रा ये बताए कि अगर ये वायरस पहले दिन 50 सेंटर्स पर थे तो दूसरे दिन उन सेंटर को बंद रखा गया और तीसरे दिन उन सेंटर्स को शुरु करने पर फिर उनमें दिक्कत आयी। भला ये कैसा वायरस है कि सिस्टम को साफ़ करने के बाद फिर से पैदा हो जाता है। कहीं ये वायरस पेपर डाउनलोड करने के वक्त इंटरनेट के ज़रिये तो कंप्यूटर्स तक नहीं पहुंच रहे। जी नहीं, ऐसा भी मुमकिन नहीं क्योंकि अगर ऐसा होता तो पूरा नेटवर्क यानि 360 लैब इन वायरस का शिकार होते महज़ 50 सेंटर नहीं। भारतीय साइबर सुरक्षा एजेंसी सीईआरटी भी इन दोनों वायरस की भारतीय इंटरनेट नेटवर्क में किसी ताज़ा हलचल से साफ़ इनकार कर रहा है। लेकिन अगर वायरस की कहानी को सच मान भी लिया जाए तो फिर इस बात पर यकीन कैसे हो कि प्रॉमिट्रिक जैसी कंपनी कंप्यूटर से एक मामूली वायरस को साफ़ नहीं कर पा रही। यानि वायरस अटैक की कहानी खुद प्रॉमिट्रिक और आईआईएम पर सवाल खड़े कर रही है।

लेकिन झूठ जितना मज़ेदार है इस पूरे खेल के पीछे का सच उतना ही कड़वा और शर्मनाक। खेल पूरे 200 करोड़ का....वो 200 करोड़ जिसमें हर किसी को मुनाफ़ा हुआ सिवाय स्टूडेंट के। दरअसल खेल तब शुरु हुआ जब आईआईएम ने देश की सबसे प्रतिष्ठित परीक्षा कैट को कंप्यूटराइज़्ड करने के लिए 200 करोड़ का टेंडर निकाला। दुनियाभर की 14 कंपनियों ने इसमें हिस्सा लिया। कंप्यूटराइज़्ड टेस्ट कराने में अच्छा खासा अनुभव रखने वाली देश की दो बड़ी कंपनियों ने भी इस बिड में हिस्सा लिया। लेकिन बाज़ी प्रॉमिट्रिक के हाथ लगी। क्यूं और कैसे जैसे सवाल मन में आ रहे हों तो संभाल कर रखियेगा इन सवालों को....क्योंकि इन सवालों के जवाब आपके होश उड़ा देंगे। खैर 200 करोड़ जैसी रकम प्रॉमिट्रिक को इसलिए दी गई ताकि देशभर में कैट के इम्तिहान के लिए एक पूरा कंप्यूटर नेटवर्क तैयार किया जा सके लेकिन ऐसा हुआ नहीं। प्रॉमिट्रिक ने हर विदेशी कंपनी की तरह भारत में एक सस्ता साथी तलाशना शुरु किया और आखिरकार NIIT पर तलाश खत्म हुई। आपमें से कितने इस NIIT को जानते हैं मालूम नहीं लेकिन मेरी नज़र में भारत की सबसे बदनाम कंप्यूटर फ़र्म जिसने कंप्यूटर एज्यूकेशन के नाम पर करोड़ों लोगों से पैसे लूटे हैं। NIIT महज़ 55 करोड़ में कैट की परीक्षा के लिए कंप्यूटर नेटवर्क मुहैया कराने को तैयार हो गया। पेपर आईआईएम को बनाने थे यानि प्रॉमिट्रिक ने ऐसी चाल चली कि महज़ उन पेपर्स को सॉफ्टवेयर में डालने के लिए उसकी 150 करोड़ की कमाई हो गई। अब बारी NIIT की थी सो उसने भी 55 करोड़ में ही अपना प्रॉफिट निकालने की जुगत भिड़ा ली। देशभर में छोटे मोटे मैनेजमेंट संस्थान तलाशे और 2-2 लाख रुपये में उन्हें अपने लैब देने के लिए राज़ी कर लिया। कॉलेजों को कम पैसे में भी फ़ायदा नज़र आ रहा था क्यूंकि कैट की परीक्षा में नाकामयाब होने वाले हज़ारों स्टूड़ेंट्स में उन्हें अपने यहां दाखिला लेकर पैसा लुटाने वाले ग्राहक नज़र आ रहे थे। दोनों तरफ़ फ़ायदा था तो सौदा आसानी से पट गया। अब हर मैनेजमेंट कॉलेज में तो सैकड़ों कंप्यूटर होते नहीं लेकिन डील के चक्कर में परीक्षा करवाने की हामी भी भर ली। ऐसे में इन कॉलेजों ने सस्ते में कंप्यूटर किराये पर लेने का फैसला किया। नेहरु प्लेस के एक डीलर के मुताबिक एक कॉलेज ने उससे 60 रुपये प्रति कंप्यूटर के हिसाब से 10 दिन के लिए 50 कंप्यूटर किराये पर लिए थे। अब ये मुझे बताने की ज़रुरत नहीं कि एक डीवीडी जितने किराये में अगर कंप्यूटर किराए पर मिल रहा है तो उसकी हालत क्या होगी। प्रॉमिट्रिक के वाइस प्रेसिडेंट रमेश नावा ने मेरे इमेल के जवाब में जो कहा ज़रा वो पढ़िए - " करीब 17 हज़ार कंप्यूटर्स की ज़रुरत थी इसलिए प्रॉमिट्रिक ने कॉलेजों के मौजूदा लैब्स और कंप्यूटर्स को ही इस्तेमाल कर लिया। दुर्भाग्यवश पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर के सीधे इस्तेमाल की वजह से पूरा सिस्टम वायरस और नेटवर्क की दूसरी खामियों की ज़द में आ गया।"

नंगा सच ये है कि कैट की परीक्षा के लिए देशभर में इस्तेमाल हुए करीब 17 हज़ार कंप्यूटर में से करीब 5 हज़ार पर पाइरेटिड विंडोज़ चल रही थी। करीब 11 हज़ार कंप्यूटर ऐसे थे जिनमें पहले से मौजूद डेटा को परीक्षा से पहले स्कैन या डीलीट करने की ज़रुरत नहीं समझी गई और 60 रुपये किराए वाले कंप्यूटर के तो कहने ही क्या....यानि भारत के सबसे प्रतिष्ठित इम्तिहान को आयोजकों ने एक मज़ाक बनाकर रख दिया। भारत के नये साइबर लॉ के मुताबिक किसी भी इलेक्ट्रानिक आयोजन में अगर बेसिक सिक्योरिटी ज़रुरतों को नज़रअंदाज़ किया गया है तो चूक की पूरी ज़िम्मेदारी आयोजकों की होगी। ऐसी हालत में हर पीड़ित 5 करोड़ तक के हरज़ाने की मांग कर सकता है। यानि कैट की परीक्षा को लेकर अगर छात्र कोर्ट पहुंचे तो लापरवाही आयोजकों को खासी भारी पड़ सकती है।

लेकिन क्या ये महज़ लापरवाही है या फिर एक सोची समझी रणनीति? नयी सरकार बनते ही विदेशी शिक्षा संस्थानों के लिए देश के दरवाज़े खोलने का ऐलान और उसके बाद से ही कभी आईआईटी की चयन प्रक्रिया पर, कभी उसकी रिज़र्वेशन पॉलिसी पर तो कभी उसके स्टाफ़ पर उठते सवालों से धूमिल होती आईआईटी की छवि....और अब कंप्यूटराइज्ड कैट के इस बदनुमा दाग से आईआईएम की साख़ पर लगे बट्टे ने मुझे सोचने के लिए कई सवाल दे दिए हैं।
लेकिन मुझसे ये मत पूछिएगा कि इतना कुछ जानते बूझते हुए भी, एक टीवी पत्रकार होते हुए भी मैं ये सब न्यूज़ चैनल पर क्यूं नहीं चलवा पाया.....क्योंकि सच बहुत कड़वा और शर्मनाक होता है मेरे दोस्त!!!

3 comments:

Anonymous said...

CAT का सच शर्मनाक़ है, उससे ज़्यादा शर्मनाक़ पता है, क्या है। हमारा इस सच्चाई से पर्दा न उठा पाने की विवशता।

Manu Dhanda said...

The facts you provided are great and make someone thoughtful enough to analyze the reasons by IIM(Prometric/NIIT etc) and the facts provided by you.

Overall a great (factual) story.
An english version of the same will enable a lot of interested people to know the facts.

rahul said...

bahut hi shandar ,satik,or thathyo par aadharit ...vastvme yah lekh khabar se jyada is or ishara kar raha hai ki lekhak ki pakad vishaya par kitni majboot hai,shyad yahi upukt tippni hogi is lekh par