न्यूज़ चैनल ने किसी नेता को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर कर दिया या फिर किसी नेता ने न्यूज़ चैनल के माध्यम से किसी दूसरे नेता से इस्तीफ़ा मांग लिया.....इस तरह की बातें तो आपने खूब देखी सुनी होंगी। लेकिन किसी नेता ने लाइव किसी न्यूज़ एंकर से इस्तीफ़ा मांग लिया हो ये मैंने तो पहली बार ही देखा है। अजब वाक़या है इसलिए अजीबोगरीब अंदाज़ में लिख रहा हूं.... पूरे लेख में न मुख्य किरदार का नाम होगा और न ही संबंधित चैनल का नाम पता चलेगा क्योंकि ऐसा करने से न सिर्फ व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुंच सकती है बल्कि एक ख़ास दोस्त भी नाराज़ हो जाएगी। खैर हुआ कुछ यूं कि महाराष्ट्र विधानसभा में अबू आज़मी हिन्दी में शपथ लेने की कोशिश कर रहे थे तो राज ठाकरे के 'गुंडों' ने कोहराम मचा दिया। अबू आज़मी को लगा झन्नाटेदार थप्पड़ भी कैमरे में कैद हो गया। बस फिर क्या था, अपनी आदत के मारे सब ख़बरिया चैनल मैदान में कूद पड़े और अगले दो मिनट के भीतर देश के हर न्यूज़ चैनल पर यही तस्वीरें छा गयी थी। एक चैनल की रफ्तार कुछ ज्यादा ही तेज़ थी.....यहां ख़बर पर आते ही सबसे पहले एमएनएस के नेता शिरीश पारकर को फोन पर पकड़ा गया.....सवाल जवाब भी होने लगे। ऐसे मौके पर न्यूज़ एंकर का एक ही धर्म होता है कि तेल पानी लेकर 'दुश्मन' पर चढ बैठो। उस वक्त चैनल की एक तीखी एंकर स्क्रीन पर थी। लेकिन जोश में शायद तेल पानी (तथ्य, फेक्ट, सबूत जो आप कहना चाहें) लेना भूल गयी और ऐसे ही टूट पड़ी शिरीश पारकर पर...
तीखी एंकर का सवाल- ' शिरीश जी राज्य भाषा से तो बड़ी होती है राष्ट्र भाषा..... अगर उन्होंने हिन्दी में शपथ ले भी ली तो ऐसा क्या हो गया।'
शिरीश पारकर का जवाब - ' अगर हिन्दी देश की राष्ट्रभाषा हुई तो मैं महाराष्ट्र की राजनीति छोड़ दूंगा और अगर नहीं हुई तो आप '*****' चैनल से इस्तीफ़ा दे दीजिएगा।'
ज़ोर का झटका ज़रा धीरे से लगा....शायद एंकर को झटके के बाद ही याद आया कि हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं 'राजभाषा' है या फिर हो सकता है देश के करोड़ों लोगों( कहीं आप भी उनमें से एक तो नहीं) की तरह बेचारी इस तथ्य से अनजान रही होगी और बचपन से ऐसा ही पढ़ती सुनती आयी हो कि हिन्दी ही भारत की राष्ट्रभाषा है। लेकिन जो भी हो एक ही झटके में तीखी एंकर का सब तेल पानी उतर गया और सवाल भी बदलने लगे। अपने पेशे की मजबूरी के तहत एंकर ने सदन की मर्यादा के नाम पर शिरीश को घेरना शुरु कर दिया। इस वाक्ये से आप भी समझ गये होंगे कि टेलिविजन की दुनिया में एक पल में क्या हो सकता है.....हीरो से ज़ीरो। या फिर ज़ीरो से हीरो जैसे राज को न्यूज़ चैनलों ने तैयार कर दिया वरना राज ठाकरे को कौन जानता था।
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5 comments:
जो भी हुआ, एक तरह से देखें तो बहुत अच्छा हुआ। टीवी न्यूज़ की दुनिया हमें पढ़ने-लिखने का मौक़ा कम ही देती है(या हम शायद ऐसा बहाना बनाते हैं)। इस वाक़ये के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि दूसरे की नब्ज़ दबाने से पहले हम अपनी जानकारी की नब्ज़ पर टटोलें और अगर बीमारी पकड़ में आ जाए तो इलाज का इंतज़ाम करें।
मज़ा तो तब आता जब तुम पूरी बात लिखते...क्योंकि बिना पहचान बताए तुमने अपने ब्लॉग की तरह बहुत कुछ अधूरा छोड़ दिया।
जो होता है, अच्छे के लिए ही होता है। ईमानदारी से कहें, तो ये बात हमें भी न पता थी...मतलब कन्फ्यूज़न था... फिर भी 'फन' है
सर्वप्रथम मित्र अनुराग को बधाई कि उन्होनें अपने मन की व्यथा बाहर लाने के लिए ब्लॉग जैसे माध्यम का निमार्ण किया। हिन्दी पर आपकी जानकारी सही और तथ्यपूर्ण है और मैं उससे सहमत हूं लेकन मेरा ये भी कहना है कि टीवी जैसे माध्यम पर बिना समुचित ज्ञान के अपनी बात नहीं रखनी चाहिए। ये अलग बात है कि आपकी भावनाएं हिंदी को राष्ट्रभाषा जैसा देखने की चाहत रखती हों। ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि पूरे देश को एक सूत्र में परोने वाली हिंदी अपने ही देश में उपेक्षित है और उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया। ऐसा ना होने से राज ठाकरे जैसे लोग अने को देश से ऊपर मानते हैं और राम कदम जैसे लोगों को ये कहना पड़ता है कि मेरे लिए संविधान से बढ़कर राज ठाकरे हैं- संतोष ओझा
बढ़िया लिखता है बेटा!हमारी तरफ भी आ जाया कर..
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