Tuesday, October 23, 2007

क्या मैं रावण हूँ ?

रावण दहन का मौका था और जल मैं गया ..........शायद इसलिए ये सवाल दिमाग में आया अब ज़रा उस जगह का नज़ारा सुनिए जहाँ पाप के प्रतीक रावण को फूकने का कार्यक्रम था हज़ारों लोगों की भीड़ और जलने वालों में रावण, मेघनाथ, कुम्भकर्ण, ब्लूलाइन और मैं खैर हादसा क्या था, क्या हुआ वो सब बाद में बताऊंगा लेकिन उससे पहले और बाद में जो कुछ हुआ वो उससे कहीं ज्यादा रोचक है हादसे से कुछ देर पहले मैं सोच चुका था कि इस मौक़े पर कैमरे के सामने क्या बोलूँगा

पी टी सी:- दिल्ली में कई जगह रावण दहन के मौक़े पर पुतले तीन नहीं बल्कि चार जलाये गए रावण, मेघनाथ और कुम्भकर्ण के पुतले तो हर साल की तरह जलाए ही गए बदलते वक़्त के साथ- साथ अपनी करतूतों की वजह से कुछ और नाम भी खलनायकों की इस लिस्ट में जुड़ गए हैं

यकीन जानिए उस वक़्त मुझे आभास भी नही था कि इस लिस्ट में मेरा भी नाम जुड़ चुका है
खैर हुआ वही जो होनी को मंज़ूर था और ब्लू लाइन के पुतले से एक बड़ा टुकडा मेरी पीठ से आकर टकराया, लगा मानो किसी ने धक्का दिया हो सहलाने के लिए पीठ पर हाथ फिराया तो पीछे से पूरी कमीज़ गायब हो चुकी थी तब पहला एहसास हुआ कि हुआ क्या है इस वक़्त तक वहाँ भगदड़ मच चुकी थी खैर मैं वहाँ से फस्ट एड के लिए निकला, बाद में कैमरा पर्सन से पूछा कि क्या उसने उस वक़्त के विज़्युअल लिए थे तो पता चला कि भगदड़ में भाई साहेब भी गिरे पड़े थे और कैमरे का मुँह आसमान की तरफ था

हादसा आजतक के रिपोर्टर के साथ हुआ था इसलिए मैनेजमेंट के होश उडे हुए थे इलाक़े के मशहूर सर्जन को बुलाया गया और उसने दवा दारु के बाद ४-५ दिन का बेड रेस्ट बता दिया तब से जैसे मानव योनि समाप्त हो गयी हो कभी कुत्तों की तरह हाथ पांव फैला कर पेट के बल सो रहा हूँ तो कभी घोड़े की तरह खडे खडे सोने की कोशिश करता हूँ आज पता चला क्यों कहा जाता है कि मैदाने जंग में कभी पीठ पर घाव नहीं खाना चाहिये इसका कायरता से कोई संबंध नहीं है इसका सीधा संबंध बाद की भयावह परिस्थितियों से है जो आजकल मैं भुगत रहा हूँ

घटना के बाद एक दोस्त ने सहानुभूति जताने के लिए मोबाइल पर जो संदेश भेजा वो कुछ इस तरह था......................... "दुनिया में आत्महत्या के कई तरीके हैं जैसे ज़हर खाना, फांसी लगाना, ट्रेन की पटरी पर सो जाना......लेकिन हमने सबसे अच्छा तरीका चुना है ---Journalism"

3 comments:

richa said...
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richa said...

मैं समझ सकती हीं ये हादसे काफी दर्दनाक रहा होगा और अभी तो तुमने इस घटनाक्रम को भले ही बड़े रोचक तरीके से पेश किया हो लेकिन इस समय तुम्हें कुछ सूझा भी नहीं होगा..खैर जैसा कि तुम्हारी बातों से लग रहा हे अब तक तो हमें इस तरह की बातों का आदि हो जाना चाहिये क्योंकि कभी ये ब्लूलाइन के पुतला होगा तो कभ मीडिया के कियी प्रशंसक का फेका गया पत्थर..चलो फिलहाल तो ये ही उम्मीद करते हैं कि तुम जल्दी ही मनुष्य का जीवन वापिस प्राप्त करो...

Meitu said...

आपबीती का इतना सजीव वर्णन!! वैसे ये ब्लूलाइन भी कमाल है..जाते जाते भी लोगों को अपनी चपेट में ले गई।अरे हां.. पूरे ब्लॉग में सबसे कमाल है पीटीसी..बेहद सटीक!