Monday, October 15, 2007
ये कैसा आतंकवाद....
सोचा था नहीं लिखूंगा....बेवजह अपने शब्दों को ऐसे लोगों के लिये ज़ाया नहीं करुंगा जिनमें इंसानियत बची ही नहीं है। अजमेर शरीफ़ में धमाका हुआ मैनें नहीं लिखा लेकिन जब दूसरा धमाका लुधियाना में हुआ तो खुद को लिखने से नहीं रोक पाया। कुछ लोग कहते हैं ये कि ये कश्मीर की लडाई है तो कुछ ने कहा ये लोग नाराज़ हैं सरकार से। लेकिन अगर नाराज़गी सरकार से है तो धमाके सरकारी दफ्तरों की बजाय दरगाहों और सिनेमा हॉल में नहीं हो रहे होते। मेरी नज़र में ये वो कायर हैं जो सरकार से टकराने की हिम्मत तो नहीं जुटा पाते लेकिन अपना ताकत ज़रूर साबित करना चाहते हैं और इसके लिये मासूमों को अपना निशाना बनाने से भी नहीं चूकते। इनसे बेहतर तो वो आतंकवादी थे जिन्होंने अपनी बात इस बुलंद आवाज़ में रखी कि सरकार हिल उठी थी। बेशक लोगों की नज़रों में उन्हें कहीं बड़ा आतंकवादी बता कर पेश किया गया था लेकिन हक़ीकत में वो पांच (या छह) कम से कम एक मकसद के लिये तो लड़ रहे थे और सामने से लड़ रहे थे। लेकिन खुद को आतंकवादी समझने वाले ये कायर अगर किसी दिन पुलिस के हत्थे चढ गये तो ...............
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2 comments:
To whom 5-6 people you are pointing in your post? Please helm me to understand. Thanks.
me 2 wanna know ,who were the 5-6 ppl,which u hav mentiond in ur post.Pls make it clear
Thanks
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