Saturday, November 6, 2010
दीवाना कहलाने की आदत नहीं रही....
अब हर ख्याल उसी का ख्याल है
हर सवाल बस उसी से सवाल है
लो गुज़र गया एक लम्हा और
लेकिन दिल का अब भी वही हाल है
ज़िंदगी कैसे सवालों से घिर गयी है
ये सोचने की भी फुरसत नहीं रही
किसके आगोश में कौन रहता है
देखने भर की अब नीयत नहीं रही
मैं कल आज और कल में उलझा हूं
किसी फैसले की अब ज़रुरत नहीं रही
दीवानगी अब लफ़्ज़ों में बची कहां है
कि दीवाना कहलाने की आदत नहीं रही।
नयी सुबह का इंतज़ार ले आया है यहां
मगर अंधेरों में रहने की आदत नहीं गयी
उलझी जुल्फ़ें फिर से दिखी एक बार
कि सुलझाने की अब कुव्वत नहीं रही
लो गुज़र गया एक लम्हा और
लेकिन दिल की हालत वैसी ही रही
क्योंकि
अब हर ख्याल उसी का ख्याल है
हर सवाल बस उसी से सवाल है....
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7 comments:
अब हर ख्याल उसी का ख्याल है
हर सवाल बस उसी से सवाल है
लो गुज़र गया एक लम्हा और
लेकिन दिल का अब भी वही हाल है
...........................
क्या खुब कहा है आपने...अच्छी रचना
धन्यवाद आशीष...
बहुत बढिया पोस्ट है,दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें
लम्हों में ज़िन्दगी का सफ़र.. बहुत खूब||
धन्यवाद दीपक...धन्यवाद मनु भाई....बस यूं ही मन में कुछ आया और लिख दिया....हौसला बढाने के लिए शुक्रिया....
बहुत खूब जनाब....
भावनाएं समझने के लिए शुक्रिया ळश्करी साहब:-)
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