दिल की उन हरकतों से अब दूर से हो गए हैं
शायद ज़िंदगी की राहों में मजबूर से हो गए हैं
अब अक्स कोई दिल को भटकाता नहीं है
शायद मुहब्बत में उसकी बा-सुरूर हो गए हैं।
कभी महफिल में रह कर भी तन्हा से थे
अब उसके आगोश में हर रंग नसीब है
गहराते हैं मेरी सोच के काले समंदर
लेकिन हर भंवर में वो हमेशा करीब है
गर खो भी जाऊं हरपल बदलती राहों में
सुकून बस इतना रहेगा कि मंज़िल करीब है
क्या हुआ जो कहने से अब डरने लगा हूं
उसके हाथों मौत भी मिले तो मेरा नसीब है